श्री चिन्तामन गणेश, सीहोर

भारत में स्थित चार स्वंय भू -चिन्तामन गणेश मंदिर में से एक अति प्राचीन विक्रमादित्य कालीन् श्रा गणेश मन्दिर सीहोर जिसका प्राचीन नाम सिद्धपुर है , सीहोर के वायव्य (पश्चिम-उत्तर) कोण में स्थित है जो कि आज भी कस्बा क्षेत्र में स्थित व गोपालपुरा ग्राम से लगा हुआ शकर मिल से पश्चिम में लगभग डेढ़ किलोमीटर दूरी पर है। इसके बारे में पूर्वजों से प्राप्त जानकारी इस प्रकार है कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व उज्जयनी (अवन्तिका) के सम्राट विक्रमादित्य महाराज (परमार वंश) प्रति बुधवार रणथंभौर (सवाई माधोपुर राजस्थान ) के किले में स्थित चिन्तामन सिद्ध गणेश के दर्शन के लिये जाया करते थे। एक दिन राजा से गणेश जी ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि है राजन तुम पार्वती नदी में शिव पार्वती के संगम स्थल पर जो वर्तमान में गणेश मन्दिर से लगभग 10-15 किलोमीटर पश्चिम में है जहां सीवन नदी (पूराना नाम शिवनाथ, पार्वती में मिली है) कमलपुष्प के रूप में प्रकट होऊगा। उस पुष्प को ग्रहण कर अपने साथ ले चलो । स्वप्न में दिये निर्देशानुसान राजा ने कमल पुष्प ग्रहण कर रथ में (काष्ट रचित) ले कर चला तभी आकाश वाणी हुई कि है राजन रात ही में जहां चाहों ले चलो। प्रातःकाल होते ही मैं वही रूक जाऊंगा। राजा कुछ दूर ही चले थे कि अचानक रथ का पहिये जमीन में धस गये। राजा ने रथ के पहिये को भूमि से निकालने का प्रयास किया, किन्तु रथ क्षतिग्रस्त हो गया। दूसरे रथ की व्यावस्था होते -होते ऊषा काल (प्रातःकाल) हो गया पक्षी गण बोलने लगे तो कमल का पुष्प गणेश जी की मूर्ति के रूप में परिवर्तित हो गया । यह मूर्ति खड़ी हुई है तथा स्वंय भू प्रतिमा है । जैसे ही राजा ने प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया वैसे ही प्रतिमा जमीन में धसने लगी, बहुत प्रयत्न करने पर प्रतिमा अपने स्थान से हिलि भी नही, बल्कि धंसती चली गई तब राजा ने वहीं उनकी स्थापना ार्ण करवाया । आज भी गणेश जी की प्रतिमा आधी जमीन में धंसी हुई है। मंदिर का जीर्णउद्धार एवं सभा मंडप का निमार्ण, बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया ।
मंदिर श्रा यंत्र के कोणो पर निर्मित है। विक्रमादित्य के पश्चात् के शालिवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण देव राय, गोंड राजा नवलशाह आदि ने मन्दिर की व्यवस्था में सहयोग किया नानाजी पेशवा विचूर साहब द्वाराकर मराठा आदि के समय मन्दिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। चिन्तामन सिद्ध गणेश होने से व 84 सिद्धो में से अनेक तपस्वियो में यहां सिद्धी प्राप्त की । सीहोर का नाम पूर्व में सिद्धपुर था जिसका उल्लेख पुराणो में मिलता है। जब नवाबी शासन का प्रारंभ हुआ उस समय के पूर्व से ही, प्रबंधक पंडित पृथ्वी वल्लभ दुबे के पूर्वज ही पूजा व्यवस्था को संचालित करते चले आ रहे है। सन् 1911 में बेगम सुल्तान जहां, सिकंदर जहॉ द्वारा प्रबंधक के पूर्वज पं. बीरबल, छोटेराम, गॉवठी को मंदिर पूजा व्यवस्था के अधिकार की सनद प्रदान की गई। उनकी मृत्यु के पश्चात अधिकार की सदन सन् 1933 ई. में नवाब हमीदुल्ला खां साहब द्वारा पं. कन्हैयालाल जी गॉवठी के नाम प्रदान की गई। उनकी मृत्यु सन् 1943 ई. में हो जाने के पश्चात् उनके एक मात्र वारिस उत्तराधिकारी पं. नेतीवल्लभ दुबे को मंदिर व भूमि के समस्त अधिकार की नई सदन दिनांक 5.8.1945 ई. को प्रदान की गई। पं. दुबे के जीवनकाल में देश आजाद हो जाने पर विलीनीकरण के बाद सभी रियासते समाप्त कर दी गई तथा जितने जागीदार, जमीदार व माफीदार थे, उन्हें लैंड रेवेन्यू एक्ट1959 के अनुसार भारत सरकार ने भूमि स्वामी बनाकर भू-अधिकार प्रदान कर दिया। तभी से स्व. पं. नेती वल्लभ दुबे उक्त व्यवस्थापक व भूमि स्वामी रहे। सन 1977 में उक्त अधिकार उनके पुत्र पं. पृथ्वीवल्लभ दुबे व हेमन्त बल्लभ दुबे के नाम नामांतरित हो गये। जो की आज भी काबिज है।

श्रा चिन्तामन सिद्ध गणेश की स्वयंभू प्रतिमा भारत में चार स्थानो पर है 1. रणथभौर (सवाई माधौपुर राजस्थान) 2. सिद्धपुर (सीहोर) 3. अवन्तिका (उज्जैन) व 4. सिद्धपुर (गुजरात) में है। अधिकांश जगह मेला लगता है। यहॉ पर लगभग 150 वर्ष पूर्व मन्दिर मे ताला नहीं लगता था चोरो ने गणेश प्रतिमा से आखों में हीरे निकाल लिये, तब गणेश प्रतिमा कि आखों से 21 दिन तक दुध की धारा चली, तब गणेश जी ने तात्कालिक पुजारी को स्वप्न देकर कहा की तुम शोक मत करो मैं खंड़ित नही हुआ हूं । तुम मुझे चांदी के नेत्र लगवा दो तभी से प्रतिमा को चांदी के नेत्र धारण कराये गये और विशाल यज्ञा का आयोजन किया तथा जन - जन में उनके प्रति आस्था बड़ी फल स्वरूप जन्म उत्सव के उपलक्ष्य में मेला आयोजन किया जाने लगा। जो कि निरंतर प्रति वर्ष लगता है। आज से लगभग 50-60 वर्ष पहले सीहोर में प्लेग कि बीमारी फेली थी। उस समय बहुत जन हानी हुई, तब मंडी में रहने वाले श्रा गंगा प्रसाद जी साहू के पिता जी श्रा रामलाल जी साहू ने मन्दिर में गणेश जी से कामना कि थी यह बीमारी समाप्त हो जावे और किसी की प्राण हानी नही हो तो मै गणेश चतुर्थी पर भण्डारा करवाऊंगा। गणेश जी ने उनकी कामना पूर्ण की तो उन्होने भंडारा कराया तभी से आज तक भंडारा होता आ रहा है। अब स्व. श्रा गंगा राम जी साहू के पुत्र गण, गणेश चतुर्थी पर ब्राम्हण व संतो को भोजन कराकर इस प्रथा को जारी रखें है। यहॉ पर सभी भक्तजनो की मनोकामनाऐं पूर्ण होती है ।

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